Pandit Hanuman Sahay

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संस्थागत शिक्षण पद्धति केे दोष  

1  शिक्षण संस्थाओं में संगीत विषय को जिस मौलिकता व गुणवता के साथ लागू किया गया था , उतनी कारगर नहीं हुई ।  2  शिक्षण संस्थाओं में अधिकांश डिग्रीधारी कलाकार नियुक्ती पाने लगे जिससे संगीत का प्रायोगिक पक्ष कमजोर होता गया । 3 शिक्षण संस्थाओं में शिक्षक व विद्यार्थी का अधिक सामिप्य ( मित्र भाव […]

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गुरू -शिष्य परंपरा में दोष   

1 वर्तमान में गुरू -शिष्य परंपरा के मायने ( अर्थ )  ही बदल गये हैं ।  2  गुरू अपने शिष्य को संगीत की गूढ  साधना तक नहीं पहूॅंचाता  है ।  उसकी इच्छानुसार  सिखाते हैं ।  3  गुरू अपने ईद -गिर्द शिष्यों की भीड चाहते हैं । जो एक प्रदर्शन का रूप हैं ।  4  सभी

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गुरू -शिष्य पद्धति के गुण  

1 वर्तमान समय में भी कुछेक संगीत गुरू अपने शिष्यों को औलाद के समान मानते हुए संगीत का ज्ञान प्रदान करते हैं।  2  गुरू अपने शिष्यों को घर भी इल्म देते हैं ।  3  गुरू अपने शिष्यों को सिखाते समय सभी प्रकार  के बंधनों से मुक्त होकर ज्ञान देते है । 4  गुरू किसी भी

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गुरू – शिष्य पद्धति एंव संस्थागत शिक्षण पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन

भारत देश धर्म प्रधान देश होने के कारण यहॉं हर विद्या के लिए गुरू  बनाया जाता है।  वह चाहे गुरूकुल में विद्यार्जन का  केन्द्र  हो या शिक्षण संस्थाऐ  हों । भारतीय माता -पिता का मानना है कि प्रत्येक बच्चे का रूझान अलग-अलग  होना स्वाभाविक  है । जिसमें वर्तमान  में तो अधिकांश यही  हो रहा है,

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जयपुर का सांगीतिक वातावरण (सन् 1950 से वर्तमान तक)

जहाँ तक जयपुर के सांगीतिक परिवेश को समझने की बात है, तो सबसे पहले हमें संगीत के महत्व को समझना होगा। जो वैदिक व लोक रीति से चला आ रहा है। यदि कहा जाये कि भारत में उपरोक्त दोनों संगीत की दोनों की विधाओं में आमूलचूल परिवर्तन होते रहें है, जो कि प्रकृति का नियम

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खयाल शैली में साहित्य का अभाव

खयाल भाषा से निकला हुआ शब्द है जिसका मतलब होता है विचार। और साहित्य हिन्दी की उस भाषा का नाम है जिसको ज्ञानी, गुणी, विद्वान, कवि और गायक आदि बहुत ही शिष्ट भाषा में लिखते हैं जो कि मात्राओं की दृष्टि से भी खरी उतरती है एवं किसी को संदेश देने में भी समाजोपयोगी होती

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लक्ष्यहीन संगीत के जिम्मेदार सरकार व कलाकार

 अध्यात्मवादियों के मतानुसार जिस प्रकार ब्रह्म से पर सृष्टि की कल्पना असंभव है। इसी प्रकर प्रकृति और चराचर जगत के प्रत्येक तत्व एवं वस्तु के आंरतरिक अवयवों में सुक्ष्मातिसुक्ष्म, अक्षुण और अ अखंड धारा सदियों से वर्तमान तक प्रतिक्षण पल-पल समाहित और प्रवाहित है और  अनंतकाल तक रहेगी। इस प्रकार संपूर्ण जगत ही अदृश्य रूप

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मानव जीवन में संगीत का महत्व एवं भूमिका

मैं मूलतः संगीत का विद्यार्थी हॅू। अतएव मेरा राजनैतिक व अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं से सीधा कोई सरोकार नहीं है। लेकिन पिछले कुछ सालों में मेरे को जिस एक बात ने गहरा असर किया तो वह है कि अफगानिस्तान जैसी जगह जहॉं पर कठोर धार्मिक शासन था, और संगीत पर ऐसे प्रतिबंध थे जिन्हें सोचकर रोगंटे खड़े

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संगीत के द्वारा आध्यात्म की ओर

यह विचारणीय है कि भारतीय कलाकारों ने संगीत की आत्मा को कैसे पहचाना। हमारें यहॉं संत महात्माओं द्वारा समाधिस्थ होने पर जो अनहद नाद का आंनद आता हैं, और उनसे पूछने पर यह सुनने को मिला कि जब उस परमात्मा से लौ लग जाती है तब हमारे अन्तरमन में छःराग व (36) छŸाीसों बाजा की

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