Biography
Pt. Hanuman Sahay Ji was born on November 25, 1960, in the village of Khajalpura, located in the Jaipur district. He was the son of Shri Kalyan Sahay Ji and Smt. Prabhati Devi Ji. From a young age, Pt. Hanuman Sahay Ji showed a deep interest in music, which was nurtured by his family. His initial training in music was under the guidance of his uncle, Shri Radha Sharan Ji, a renowned Sanskrit scholar. Additionally, he received valuable musical insights from another uncle, Shri Narsingh Das Ji Marwari, further enhancing his foundational knowledge and passion for music.
डाॅ. हनुमान सहाय
पं. हनुमान सहाय जी का जन्म 25 नवंबर, 1960 को जयपुर जिले के साजलपुरा ग्राम में श्री कल्याण सहाय जी एवं श्रीमती प्रभाती देवी जी के घर हुआ। आपने अपनी प्रारंभिक संगीत शिक्षा अपने ताऊ जी श्री राधा शरण जी जो की संस्कृत के प्रकांड विद्वान भी थे एवं चाचा श्री नरसिंह दास जी मारवाड़ी से प्राप्त की। आप सांगीतिक परिवार में जन्मे आपके पिता कल्याण सहाय जी बहुत ही सुंदर हारमोनियम वादन किया करते थे एवं आपके चाचा दुर्गा लाल जी तबला बजाते थे। निंबार्क संप्रदाय से दीक्षित होने के कारण आप के घर में सत्संग का माहौल रहा इसके पश्चात आपने 10 वर्ष की आयु में पंडित चिरंजीलाल जी तँवर से गंडा बंध शिष्यत्व प्राप्त किया। इस बीच गुरु की आज्ञा से आप कुछ समय के लिए मुंबई गए और आपने पं. गोविंदप्रसाद जी जयपुरवालों से संगीत का मार्ग दर्शन प्राप्त किया। सन 1983 में आपकी नौकरी संगीत विभाग वनस्थली विद्यापीठ में लगी और वहां रहते हुए आपने पं. रमेशचंद्र नाटकर्णी जी से शास्त्रीय संगीत की बारीकियों का ज्ञान प्राप्त किया एवं जयपुर घराने की विशुद्ध शास्त्रीय परम्परा को अक्षूण रखा है। डॉ सहाय ने खेरागढ़ विश्वविद्यालय से सन २००० में भारतीय शास्त्रीय संगीत में एम॰ ए॰ तत्पश्चात मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर से सन् २००९ में पी॰एच॰डी॰ की।
डॉ सहाय ने कई राष्ट्रिय संगोष्ठियों में व्याख्यान दिये, जैसे सम (सोसाइटी फॉर एक्शन थ्रू म्यूजिक), दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रिय संगोष्ठी में ‘संगीत शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकों की भूमिका’, ‘मानव जीवन में संगीत की भूमिका एवं महत्त्व’ जैसे विषयों पर व्याख्यान, राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर द्वारा आयोजित संगोष्ठी में ‘माड’ विषय पर व्याख्यान, जवाहर कला केंद्र, जयपुर द्वारा आयोजित संगोष्ठी में ‘माड का ठुमरी से संबंध’ पर व्याख्यान, भारतीय नृत्य कला केंद्र, जामनगर (सौराष्ट्र) द्वारा आयोजित संगोष्ठी में ‘ठुमरी, दादरा एवं माड पर व्याख्यान एवं मंच प्रदर्शन दिया इत्यादि।
डॉ सहाय ने राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर द्वारा संपादित ‘विचार राग सागर’ और ‘राजस्थान की विशिष्ठ गायन शैली-माड एवं राज पब्लिकेशन हाउस, जयपुर द्वारा संपादित ‘मरुधरा के भक्त कवि गायक’, का लेखन कार्य किया।
डॉ हनुमान सहाय जी ने कई गायन प्रस्तुतिया दी जैसे,
पं गामा महाराज मेमोरियल राष्ट्रिय संगीत महोत्सव, २०१० दिल्ली में, ठुमरी गायन, आवर्तन संस्था, बनारस उ.प्र. २०११ में गणेश महोत्सव, अमरावती, महाराष्ट्र में, सुर संसद, ठुमरी गायन, मुंबई में, classical music soul connect powered by Rajasthan tourism, Morning Ragas, जवाहर कला केंद्र, जयपुर में इतयादि।
डॉ सहाय ने वनस्थली विद्यापीठ, संगीत विभाग में २० वर्षों तक संगीत प्रशिक्षण दिया तथा सत्यसाईं महिला महाविद्यालय, संगीत विभाग में २ वर्ष व्याख्याता रहे।
डॉ सहाय जी शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय संगीत में आकाशवाणी से बी हाई ग्रेड से चयनित कलाकार है साथ ही अनेक संस्थाओं द्वारा संगीत में उत्कृष्ट कार्यों हेतु सम्मानित किया गया। उनमे से प्रमुख रूप से संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार, दिल्ली द्वारा राजस्थान की विशिष्ठ गायन शैली ‘माड’ पर वरिष्ठ अध्येतावृत्ति (सीनियर फैलोशिप) सन् २०१५ में दी गई, Honorary member of west zone culture center, Udaipur में सन् २०१७ को, बाल गंधर्व शोध संस्थान द्वारा सन् २००९ में संगीत ऋषि सम्मान, बनारस में राष्ट्रीय सम्मान आवर्तन सन् २०११ में, संगीत भारती बीकानेर द्वारा डॉ जयचंद शर्मा सम्मान सन् २०१२ में, इत्यादि।
वर्तमान में डॉ सहाय सुर साहित्य कला संस्थान , जयपुर के अध्यक्ष है जिसकी स्थापना आपने जन्माष्टमी २००४ में कला मण्डल के नाम से की। तत्पश्चात देशी-विदेशी स्तर पर कार्य विस्तार को देखते हुए इस संस्था को २००६ में एक कार्यक्रम ‘मानस २००६’ के तहत “सुर-साहित्य कला मण्डल” के नाम से नवीन नाम दिया। 2014 में इस संस्थान को एनजीओ में रजिस्टर कराया गया एवं इसका नाम सुर साहित्य कला संस्थान रखा गया। इस संस्था में भारतीय संगीत व क्षेत्रीय संगीत की आधारभूत पुरातन गायकी की साधना के साथ समाज के हित में विविध कार्य की विस्तृत योजना है।