डॉक्टर हनुमान सहाय द्वारा लिखित राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित
पुस्तक “विचार राग सागर” में यह ध्यान रखा गया है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और शाब्दिक साहित्य की अवधारणा ज्यों की त्यों बनी रहे। जिस भी साहित्य को साथ लेते हुए गाया जाए वह राग व साहित्य के धर्म को पूर्ण रूप से निभाएं अतः विचार राग सागर में जितनी भी रचनाएं लिखी गई है वह रागानुकूल व छंद-बद्ध लिखी गई है। ताकि संगीत के विद्यार्थियों को गायन करते समय राग को बरतने में व साहित्य को समझने में परेशानी ना हो। साथ ही इसमें दोहा सवैया व कवित्तादी का उल्लेख भी दिया गया है। जो वर्णित साहित्यिक रचनाओं के साथ तादात्म्य रखते हैं।
विशेष बात यह है कि शास्त्रीय संगीत की लगभग सभी साहित्यिक रचनाएं संगीतबद्ध की गई है। वे अतिविलंबित गायन के लिए खरी नहीं उतरती वरन् गायक संगीत साधक होने की वजह से राग व ताल रूपी सागर में तेरता हुआ पार हो जाता है। पुस्तक विचारक सागर में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि जो भी रचना की जाए वह अति विलंबित की ही साहित्यिक रचना हो या मध्यलय की रचना हो भारतीय संगीत के सभी वर्गों के लिए जिनमें सुधी श्रोता कलाकार व विद्यार्थी आते हैं, उनके पठन में ताजगी व रुचि बढ़े। लेखक को साहित्यिक रचनाएं लिखने का रुझान रहा है। लेखक ने अपने शिक्षण काल में संगीत विद्यार्थियों को सिखाया व मंच पर उतारा तो सभी ने इन बंदिशों की सराहना की। इन बंदिशों को विद्वतजन द्वारा प्रमाणित करवाने के बाद ही पुस्तक विचारक सागर लिखने की कोशिश की है।