राजस्थान में कला का विकास सैकड़ों वर्ष पुराना है। प्रागैतिहासिक काल में पन्नों को पलटा जाए तो हमें इसका प्रमाण स्वता ही प्राप्त हो जाएगा। प्राचीन काल में कला को प्रोत्साहन देने का प्रगति की ओर अग्रसर करने का श्रेया सदैव राजा महाराजाओं को रहा है।
वर्तमान समय में अनेक कलाकार अपने कला कर्म से व कला धर्म से समाज को अपने राज्य को प्रांत को या कहें कि पूरे देश को गौरवान्वित कर रहे हैं और अनेक कलाकारों को कला के लिए वर्तमान समय में ललित कला अकादमी पुरस्कृत कर प्रोत्साहन देने के साथ-साथ प्रगति की ओर अग्रसर कर रही है। यदि आंकड़े देखे जाएं तो भारत देश में प्रगति की ओर अग्रसर रहने वाले कलाकारों की एक पूरी पीढ़ी अथवा एक ही कलाकार के समग्र सर्जन पर या कहें उनके कृतित्व के पूरे पक्षों का व्यक्तिगत जीवन परिवेश, सहायक शुभचिंतकों, पारिवारिक परिवेश एवं समकालीन परिस्थितियों आदि का उल्लेख अधिक देखने को नहीं मिल पाता। यदि पश्चिमी देशों में देखा जाए तो वहां यह परंपरा अत्यधिक उन्नत है। परंतु भारत देश में अभी इसका अभाव है। हमारे देश के कई कवियों व गायकों की जीवनिया लिखी गई है। मैंने भी भारत के कुछ कवी-गायकों को अपने शोध के अध्ययन से आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस कार्य का शुभारंभ कुछ देरी से हुआ।
*मरुधरा के भक्त कवि गायक*
राज पब्लिकेशन हाउस जयपुर
2.अब तक किए गए कार्यों की समीक्षा
इस पुस्तक कार्य का विषय विशेष रूप से इन कवि गायकों पर चुना और जानना चाहा कि ये लोग कैसे अपने जीवन में सृजन कर पाए, गा पाए। अतः किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। मैंने देखा कि दूरदर्शन आदि मनोरंजन व ज्ञान के साधन तो अब प्रचलन में आये हैं, अन्यथा यह कवि गायक ही ज्ञान व मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। जिससे सामान्य जनता अपने ज्ञान को भी बढ़ाती थी और संगीत में आनंद भी लेती थी कि कभी गायक अपनी साहित्यिक रचनाओं से व अपने औजपूर्ण गायकी से समाज को सुधार की ओर अग्रसर किया करते थे। विदेशी संस्कृतियों के कूप्रभाव से बचाए रखते थे। हमारे देश में पाश्चात्यीकरण की कैसी भी आंधी चले कैसा भी तूफान उमड़े पर भारतीय संस्कृति का दीपक इन खराब संस्कृतियों में भी काव्य रूपी दीये में स्वर रूपी बाती को सदैव देदीप्यमान रखेगा। इन कवि गायको की अद्भुत कला को पंडित जी ने संजोने का उपरोक्त कारणों की वजह से प्रयत्न किया। समकालीन भारतीय गायन व लेखन में गिने चुने ही कलाकार हैं जिन्होंने अपने शहर के साथ-साथ अपने दोनों विधाओं को साथ रखकर मरम भरा संबंध बनाया हो। लेखक ने अपने ही नगर के विशिष्ट कलाकारों के रचनात्मक लेखन व गायन शैली पर हो रहे कार्यों में एक और हवन किया। विश्वास के साथ लेखक कह रहे हैं कि इस दिशा में पुस्तक लेखन कार्य करने से यह तथ्य सामने आएगा कि काव्य एवं गायन के क्षेत्र में ढूंढ़ाड़ के कवि गायकों की सक्रिय भूमिका क्या थी।
*मरुधरा के भक्त कवि गायक* 3.प्रस्तावित पुस्तक की विषय वस्तु
सर्वप्रथम लेखक ने भारतीय संगीत के इतिहास का वर्णन किया। जिसमें संगीत का जन्म कैसे हुआ, कब हुआ। सामगान के भेद, विकास का पहला युग,गंधर्व संगीत परंपरा, अनेक कालों में संगीत की स्थितियां, घरानों का स्थान,मुगल काल से लेकर वर्तमान काल तक का वर्णन किया। उसके पश्चात संगीत का शास्त्रीय विवेचन, राग रागिनी पद्धति, ताल संबंधित जानकारी। भक्ति विमर्श अनेक संतों एवं भक्तों की रचनाओं का समावेश। मरुधरा के भक्त कवि गायकों के प्रकाशित भजनों की स्वरलिपि सहित व्याख्या एवं अप्रकाशित भजनों की स्वरलिपि सहित व्याख्या एवं कवि गायकों के कतिपय अन्य अप्रकाशित भजन।