1 वर्तमान में गुरू -शिष्य परंपरा के मायने ( अर्थ ) ही बदल गये हैं ।
2 गुरू अपने शिष्य को संगीत की गूढ साधना तक नहीं पहूॅंचाता है । उसकी इच्छानुसार सिखाते हैं ।
3 गुरू अपने ईद -गिर्द शिष्यों की भीड चाहते हैं । जो एक प्रदर्शन का रूप हैं ।
4 सभी गुरूजन अपने -अपने स्तर से संगीत ( सामवेद ) का मुल्यांकन करने लगे हैं ।
5 तुच्छ लोभ के कारण संगीत को समय सीमा में बांध दिया गया है ।
6 संगीत -साधकों का फकीरी भाव भौतिकवादी अग्नि में स्वाहा होता जा रहा है ।
7 संगीत का व्यवसायीकरण होने से व्यक्ति -व्यक्ति के व्यवहार में प्रतिकूल असर पडा है ।
8 अधिकतर गुरूजन केवल स्वयं की ही प्रशंसा करते हैं धीरे -धीरे वही गुण शिष्य में आते हैं । जिसके कारण ईर्ष्या -द्वेष को बढावा मिलता है ।
9 लोभवृति के कारण गुरूजन धनाढय लोगों को भी सीखाने लगे हैं ,जो संगीत का शौक तो रखते हैं पर संगीत के मर्म को नहीं जानना चाहते ।
10 गुरूजनों में मादक पदार्थो का सेवन अधिक होने लगा है जिसका दुष्परिणाम शिष्यों को भी भोगना पडता है ।
11कुछेक गुरूजन चरित्र की कसौटी पर खरे नहीं उतरते जिस कारण संगीत के विद्यार्थियों मे कमी हुई है ।
12 गुरूजनों का सांगातिक शिक्षण मानदेय उस प्रतिभावान विद्यार्थी के लिए दुर्लभ हो गया जो आर्थिक -दृष्टि से कमजोर है ।
13 स्वयं गुरूजनों में धैर्य की कमी हो गयी है । शिष्य को समय से पहले ही मंच दिलवाने में उत्सुक रहते हैं ।
14 गुरूजन संगीत को भक्ति की साधना नहीं मानकर उदर पूर्ति का साधन मान लिया है ।
संस्थागत शिक्षण पद्धति के गुण
1 स्वतंत्रता के बाद देश की शिक्षण संस्थाओं में संगीत को ऐच्छिक विषय के रूप में रखा गया ।
2 संगीत विषय को प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालयीन स्तर तक लागू किया
3 संगीत में पी एच डी लिट ,नेट व स्लेट और एम फिल आदि भी होने लगे ।
4 शिक्षण संस्थाओं में स्थित पुस्तकालयों द्वारा संगीत के शास्त्र पढने से विद्यार्थी का शास्त्र ज्ञान बढा हैं ।
5 शिक्षण संस्थानों में संगीत का प्रायोगिक ज्ञान सरलता से प्राप्त होने लगा
6 शिक्षण संस्थाओं के द्वारा धनहीन असहाय प्रतिभावान विद्यार्थी को छात्रवृत्ति दी जाती है ।
7 शिक्षण संस्थाओं के कारण ही सभी वर्ग के विद्यार्थियों को संगीत शिक्षा मिलने लगी ।