Pandit Hanuman Sahay

गुरू -शिष्य परंपरा में दोष   

1 वर्तमान में गुरू -शिष्य परंपरा के मायने ( अर्थ )  ही बदल गये हैं । 

2  गुरू अपने शिष्य को संगीत की गूढ  साधना तक नहीं पहूॅंचाता  है ।  उसकी इच्छानुसार  सिखाते हैं । 

3  गुरू अपने ईद -गिर्द शिष्यों की भीड चाहते हैं । जो एक प्रदर्शन का रूप हैं । 

4  सभी गुरूजन अपने -अपने स्तर से संगीत ( सामवेद )  का मुल्यांकन करने लगे हैं । 

5 तुच्छ लोभ के कारण संगीत को समय सीमा में बांध दिया गया है । 

6  संगीत -साधकों का फकीरी भाव  भौतिकवादी अग्नि में स्वाहा होता जा रहा है । 

7 संगीत का व्यवसायीकरण होने से व्यक्ति -व्यक्ति के व्यवहार में प्रतिकूल असर पडा है । 

8 अधिकतर गुरूजन केवल स्वयं की ही प्रशंसा करते हैं धीरे -धीरे वही गुण शिष्य में आते हैं ।  जिसके कारण ईर्ष्या -द्वेष को बढावा मिलता है ।  

9 लोभवृति के कारण गुरूजन धनाढय लोगों को भी सीखाने लगे हैं ,जो संगीत  का शौक तो रखते हैं पर  संगीत के मर्म को नहीं जानना चाहते । 

10 गुरूजनों में मादक पदार्थो  का सेवन अधिक होने लगा है जिसका दुष्परिणाम  शिष्यों को भी भोगना पडता है । 

11कुछेक गुरूजन चरित्र की कसौटी पर खरे नहीं उतरते जिस कारण संगीत के विद्यार्थियों मे  कमी हुई है । 

12 गुरूजनों का सांगातिक शिक्षण मानदेय उस प्रतिभावान विद्यार्थी के लिए दुर्लभ हो गया जो आर्थिक -दृष्टि से कमजोर है । 

13 स्वयं गुरूजनों में  धैर्य की कमी हो गयी है । शिष्य को समय से पहले ही मंच दिलवाने में उत्सुक रहते हैं । 

14 गुरूजन संगीत को भक्ति की साधना नहीं मानकर उदर पूर्ति का साधन मान लिया है  । 

संस्थागत शिक्षण पद्धति के गुण   

1 स्वतंत्रता के बाद देश की शिक्षण संस्थाओं में संगीत को ऐच्छिक विषय के रूप में रखा गया ।  

2 संगीत विषय को प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालयीन स्तर तक लागू किया  

3 संगीत में  पी  एच डी लिट ,नेट व स्लेट और एम फिल आदि भी होने लगे ।

4 शिक्षण संस्थाओं में स्थित पुस्तकालयों द्वारा संगीत के शास्त्र पढने से विद्यार्थी का शास्त्र ज्ञान बढा हैं । 

5 शिक्षण संस्थानों में संगीत का प्रायोगिक ज्ञान सरलता से प्राप्त होने लगा 

6  शिक्षण संस्थाओं के द्वारा धनहीन असहाय प्रतिभावान विद्यार्थी को छात्रवृत्ति दी जाती है । 

7  शिक्षण संस्थाओं के कारण ही सभी वर्ग के विद्यार्थियों को संगीत  शिक्षा  मिलने लगी ।  

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