1 वर्तमान समय में भी कुछेक संगीत गुरू अपने शिष्यों को औलाद के समान मानते हुए संगीत का ज्ञान प्रदान करते हैं।
2 गुरू अपने शिष्यों को घर भी इल्म देते हैं ।
3 गुरू अपने शिष्यों को सिखाते समय सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर ज्ञान देते है ।
4 गुरू किसी भी शिष्य को आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं देखता उसकी नजर में केवल प्रतिभावान होना आवश्यक है, धनाढय होना नहीं ।
5 गुरू अपने शिष्यों को केवल व्यवसायोन्मुखी ही नहीं बनाते वरन संस्कारोन्मुखी भी बनाते हैं ।
6 गुरू अपने शिष्यों को यह भी शिक्षा हैं कि समाज में रहते हुए छोटे -बडे का सम्मान कैसे किया जाये ।
7 गुरू अपने शिष्यों को संगीत में तीनों ( गायन ,वादन ,नृत्य ) विधाओं का सम्मान करना सिखाते है ।
8 गुरू – शिष्य पद्धति ही एक ऐसी पद्धति हैं जहां संगीत को साधना के रूप में कई वर्षो तक सिखाया जाता है । तभी तो कहा है “एके साधे सब सधे सब साधे सब जावे” ।
9 गुरू -शिष्य पद्धति में संगीत के साथ-साथ काव्य कला भी सिखाई जाती है ।
10 गुरू पद्धति में ही आत्मा से परमात्मा का मिलन कैसे हो ,यह भी सिखाया जाता है ।