Pandit Hanuman Sahay

गुरू -शिष्य पद्धति के गुण  

1 वर्तमान समय में भी कुछेक संगीत गुरू अपने शिष्यों को औलाद के समान मानते हुए संगीत का ज्ञान प्रदान करते हैं। 

2  गुरू अपने शिष्यों को घर भी इल्म देते हैं । 

3  गुरू अपने शिष्यों को सिखाते समय सभी प्रकार  के बंधनों से मुक्त होकर ज्ञान देते है ।

4  गुरू किसी भी शिष्य को आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं देखता उसकी नजर में केवल प्रतिभावान होना आवश्यक है, धनाढय होना  नहीं ।   

5  गुरू अपने शिष्यों को  केवल व्यवसायोन्मुखी ही नहीं बनाते वरन संस्कारोन्मुखी भी बनाते हैं । 

6  गुरू अपने शिष्यों को यह भी शिक्षा हैं कि समाज में रहते हुए छोटे -बडे का सम्मान कैसे किया जाये ।

7 गुरू अपने शिष्यों  को संगीत  में तीनों ( गायन ,वादन ,नृत्य )  विधाओं का सम्मान करना सिखाते है ।  

8  गुरू – शिष्य पद्धति ही एक ऐसी पद्धति हैं जहां संगीत को साधना के रूप में कई वर्षो  तक सिखाया जाता है । तभी तो कहा है “एके साधे सब सधे सब साधे सब जावे” । 

9 गुरू -शिष्य पद्धति में संगीत के साथ-साथ काव्य कला भी सिखाई जाती है । 

10  गुरू पद्धति में ही आत्मा से परमात्मा का मिलन  कैसे हो ,यह भी सिखाया जाता है ।  

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